Wednesday, April 7, 2010
"!!प्रेम की विवशता!! "
प्रेम मुझे करते हो लेकिन
प्रेम मुझे तुम कर न सकोगे l
प्रेम राह में कांटे लाखों
चाहोगे पर चल न सकोगे ll
प्रेम मुझे करते हो लेकिन
प्रेम मुझे तुम कर न सकोगे l
मै चाहूंगा प्रेम हृदय का
आयेगा जो रास नहीं l
तुम चाहोगी प्रेम देह का
जिसकी मुझको प्यास नहीं l
तुम धरती मै नील गगन हूँ
चाहोगे पर मिल न सकोगे ll
प्रेम मुझे करते हो लेकिन
प्रेम मुझे तुम कर न सकोगे l
मै मानूंगा देवी तुमको
मंदिर रास न आयेगा l
तुम स्वच्छंद हवा का झोंका
दिल में ठहर न पायेगा l
तूफाँ के संग बहने वाले
मेरी खातिर रुक न सकोगे ll
प्रेम मुझे करते हो लेकिन
प्रेम मुझे तुम कर न सकोगे l
कर्म पूर्ण है मेरा जीवन
दूर मुझे जाना होगा l
तुम चाहोगी रोज़ मिलन हो
मगर न मिल पाना होगा l
ये वियोग होगा दुखदायी
विरह दर्द तुम सह न सकोगे ll
प्रेम मुझे करते हो लेकिन
प्रेम मुझे तुम कर न सकोगे l
"राज
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बहुत सुन्दर रचना है\बधाई।
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